♻♻हमारे महाराज जी ♻♻

 




एक सत्संगी की शिवजी के किसी प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पर ड्यूटी कुछ इस प्रकार थी कि वो एक प्वाइंट से दूसरे प्वाइंट तक तीर्थ यात्रियों को लेकर जाना होता था। उस दिन भी ये तीर्थयात्रियों को लेकर जाने वाले थे कि बस में चढे और वापिस उतर गये और पता नहीं क्या हुआ ये वहीं से सीधे मनगढ़ पँहुचे और मनगढ़ पहुंचने पर पता चला कि उस बस का एक्सीडेंट हुआ वो नीचे खाई में गिर गयी। इन्होंने बताया कि मुझे तो बस मनगढ़ आने के अलावा कुछ सूझ ही नहीं रहा था जैसे कोई पकड के मनगढ़ ले आया हो। जब तीन साल पहले वो गहवर वन गये, तो वहां एक बुजुर्ग पंडित जी थे। तीनों दीदी, प्रचारक दीदी और भी बहुत सत्संगी लोग भी गये थे। कुछ लोग लाइन में लगकर मन्दिर में प्रणाम कर रहे थे और लाइन बहुत लम्बी थी। पाँच छः लोग एक प्रचारक दीदी के साथ उन पण्डित जी के पास खड़े हो गये। तो वो पण्डित जी दीदी लोगो के दर्शन के बाद ही उन पांच छः लोगों को आँसू बहाते हुए महाराज जी के विषय में कुछ बताने लगे। उन्होंने बताया कि महाराज जी इस जंगल में (जो मंदिर के पीछे था) भाव में कई घंटे, कई दिन पडे रहते थे। आगे उन्होंने बताया कि एक बार हमने अपनी आँखों से देखा कि एक कन्या के रूप में स्वयं राधा रानी सिर पर छोटी सी मटकी लेकर श्री महाराज जी को माखन खिलाने आयीं थीं। क्योंकि महाराज जी ने कई दिन से खाना नहीं खाया था। तो वो कन्या ही खाना खिलाकर गयीं थीं। फिर उसके आगे वो रोने लगे। आगे कुछ नहीं बता सके। बस रोकर इतना बोल रहे थे कि महाराज जी ने बडा रस दिया, बडी कृपा की। मेरे गुरूवर मेरे गिरधर प्यारे। दोउ एकहि हो न सपनेहुँ न्यारे॥ 

 प्यारे प्यारे महाराज जी की जय

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