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त्यागहिं कर्म शुभाशुभ दायक॥
भजहिं मोहिं सुर नर मुनि नायक।
तुम्हारा रिश्तेदार केवल मैं हूँ, राम कह रहे हैं- ये संसारी तुम्हारे फिज़िकल माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति नहीं हैं। सच पूछो तो ये लोग हितैषी नहीं हैं और तुम्हारे हित को नष्ट करने पर तुले हैं। कोई घर में आपके ईश्वर की ओर चले तो सारे घर के लोग- हाँ, हाँ, हाँ, ये देखो! क्या हो रहा है?' क्या हो रहा है?' अरे! राधे राधे बोले जा रहा है। क्यों? आपने ही तो भेजा था मनगढ़ उसको। भेजा तो था लेकिन इसलिये थोड़े ही भेजा था कि दिन-रात राधे राधे करे। अरे! थोड़ा-सा अपने मन में कर ले। सब- वो बहिन भी पीछे पड़ी है, भाई भी, बाप भी, माँ भी और फिर भी नहीं मान रहा है वो लड़का। तो चलो इसके गुरुजी के पास, खबर लेते हैं, उनकी। लो। अरे! गुरुजी क्या करेंगे भई? अरे! गुरुजी ने क्या किया है? उन्होंने तो एक शास्त्र-वेद की बात बता दी। मानना तो जीव के ऊपर निर्भर है। अगर गुरुजी के हाथ में होता तो सारे विश्व को न उठा ले जाते गोलोक। तो ये बताओ काहे के हितैषी हैं, ये तो शत्रु हैं। इसलिये तुलसीदास ने कहा था मीरा से कि-
तजिये ताहि कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही।
जाके प्रिय न राम वैदेही ।
तो संसार के जितने भी नातेदार हैं इनको हित का ही पता नहीं है तो हमारा हित क्या करेंगे? एक अन्धा दूसरे अन्धे को क्या मार्गदर्शन करायेगा? सीधी सी बात है। और भगवान् से हमारा जो सम्बन्ध है वो अनाद्यनन्त, नित्य है, हम उनके अंश हैं।
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।(गीता १५-७)
चिन्मात्रं श्री हरेरंशम्।
हम उसके अंश हैं और पुत्र भी हैं-
अमृतस्य वै पुत्राः।
अरे ! पुत्र ही क्यों-
एको ह वै देवो नारायणो माता पिता भ्राता निवासः शरणं सुहृत् गतिः॥(वेद)
वेद कह रहा है- वो ही हमारा सब कुछ है। 'भी' नहीं, 'ही'। आत्मा हैं न हम? हाँ। बस, ये नम्बर एक ज्ञान। हम आत्मा हैं, शरीर नहीं। जब ये बात आप मान लेंगे तो फिर माँ क्या, बाप क्या, भाई क्या, बहिन क्या, बीबी क्या, संसार क्या, सब खतम क्योंकि हम शरीर हैं ही नहीं। ये तो शरीर सम्बन्धी लोग हैं। अरे भई! आपका अपना बेटा है? हाँ। और एक वो बहिन का बेटा है, वो भाई का बेटा है, वो पड़ौसी का बेटा है, ऐसा आप बोलते हैं न। उसका बेटा है। आवारा हो गया है। हो जाने दो, क्या करना है, अपना क्या बिगड़ता है। अपना बेटा तो ठीक है। जैसे शरीर को 'मैं' मान करके अपने बेटे में ममता रखते हैं, ऐसे आत्मा को 'मैं' मानो तो फिर शरीर के विषय में तुम्हारा कोई टेन्शन ही न रह जाय, खतम। हम शरीर हैं ही नहीं। तो भगवान् से हमारा सब सम्बन्ध है लेकिन हम जानते नहीं।
प्रवचनांश- भक्तियोगरसावतार जगद्गुरूत्तम १००८ स्वामि श्री कृपालु जी महाराज
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