प्रवचनांश- भक्तियोगरसावतार जगद्गुरूत्तम १००८ स्वामि श्री कृपालु जी महाराज

 एक बार एक बहुत बड़े विद्वान् (मैं नाम नहीं बताऊँगा) मुझसे कहते हैं कि महाराज जी प्राइवेट क्वेश्चन कर रहा हूँ, आप किसी से कहियेगा नहीं। हमने कहा- क्या? कि देखो! संसार में उसी हृदय में माँ भी है, बीबी भी है और बेटी भी है, बहिन भी है और किसी को एतराज नहीं है। किसी स्त्री ने आज तक अपने पति से नहीं कहा कि अपनी बहिन को हृदय में क्यों रखते हो? अपनी माँ को क्यों रखते हो? केवल हमको रखो। अरे भई! बहिन का प्यार अपनी जगह है, वो रहेगा। माँ का प्यार अपनी जगह है, वो भी रहेगा, उसी अन्तःकरण में रहेगा। और जगह उसके लिए अलग से कोई कोठी नहीं बनाई जायेगी और किसी को कोई ऐतराज नहीं और भगवान् बड़ा ईष्यालु है, वो कहता है- मामेकं शरणं ब्रज। वो पण्डित जी ने, एक विद्वान दार्शनिक ने हमसे जब पूछा तो हमने कहा- आपसे किसने कहा? अरे, जैसे ये आपके यहाँ वाले तो थोड़े से लोग हैं आपके- दस बारह, पन्द्रह, पच्चीस बच्चे होंगे, चलो पचास मान लो। एक, दो चार, दस, बीस, पचास बीबी होंगी, चलो मान लिया। बाप तो एक ही होगा, माँ भी एक ही होगी। ये जो आपका छोटा-सा परिवार है इतने ही को आप रख सकते हैं और हमारे यहाँ तो गोलोक के अनन्त महापुरुष हैं, अनन्त गोपियाँ, अनन्त गोप, ये पूरा परिकर है अनलिमिटेड। आप सबको रखिये। भगवान् को तो इतनी खुशी होती है, वो कहते हैं-



आराधनानां सर्वेषां विष्णोराराधनं परम्।

तस्मात्परतरं देवि! तदीयानां समर्चनम्।।


मेरे भक्त को जो हृदय में रखे वहाँ तो मैं सिर के बल भागता हुआ जाता हूँ। मुझको बुलाने की भी जरूरत नहीं। वो तो मेरा परम प्रिय हो जाता है। तो आपको ये कन्फ्यूजन है कि श्रीकृष्ण ऐसा कह रहे हैं- 'केवल मैं रहूँगा'। अरे! केवल श्रीकृष्ण का मन ही नहीं लगेगा, बोर होकर भाग जायेंगे। हॅं, अकेले नहीं रहने वाले वो। अरे ! घर में उनके माँ है, बाप है, भाई है, सब थे ब्रज में, फिर भी मन नहीं लगता था वहाँ, भागे-भागे घूमते थे दिन में, रात में, चारों ओर सखाओं और सखियों के घरों में तो वो तुम्हारे घर में अकेले क्या करेंगे? वहाँ मक्खी भी नहीं है कि मारें। हाँ, संसार में लोग कहते हैं न, अकेले क्या मक्खी मारेंगे?


अस्तु, तो अनन्य का अर्थ है कि श्रीकृष्ण, उनका नाम, रूप, लीला, गुण, धाम, जन में ही मन का अनुराग हो और श्रीकृष्ण के बारे में भी मैंने आपको बार-बार बताया है कि वे श्रीकृष्ण जो कुंज वाले हैं, वृन्दावन की कुंज वाले श्रीकृष्ण। और कुंज वाले श्रीकृष्ण के भक्त, उनमें ही मन का अटैचमेन्ट रहे। मथुरा वाले कृष्ण, द्वारिका वाले कृष्ण, बैकुण्ठ वाले कृष्ण में नहीं। यद्यपि बात एक है लेकिन फिर भी वो बात नहीं है। यानी चाय में चीनी और गुड़ कुछ भी डाल दो, बात एक है लेकिन चीनी और है, गुड़ और है जी, गुड़ डाल के कोई चाय पिलावे तो उसको लोग इन्सल्ट मानते हैं और चीनी डाल के पिलावे तो हाँ, ठीक है, नॉर्मल है और अगर मिश्री डाल के पिलावे तो रिस्पेक्ट है- 'क्या बात है'। तो तस्मिन् अनन्यता, तस्मिन् माने श्रीकृष्ण में, श्रीकृष्ण के पूरे परिवार में मन रहे- ये अनन्यता। 


प्रवचनांश- भक्तियोगरसावतार जगद्गुरूत्तम १००८ स्वामि श्री कृपालु जी महाराज

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