♻♻ हमारे महाराज जी ♻♻


       



एक बार एक रामायण सम्मेलन में श्री महाराज जी को बुलाया गया था। उस सम्मेलन में बिन्दु गोस्वामी भी आये हुए थे, जो उस समय रामायण कथा वाचकों में चोटी के कथा वाचक माने जाते थे। कहते हैं उस समय श्री बिन्दु गोस्वामी एक दिन के कथा का तीन सौ रूपया दक्षिणा लिया करते थे। उस सम्मेलन में बिन्दु गोस्वामी ने कहा कि इस समय जो सम्मेलन हो रहा है इसमें भारत के समस्त मानस मर्मज्ञ आये हुए हैं। मानस पर किसी को कोई भी शंका हो तो वह समाधान कर ले। इसके बाद आपको (श्री महाराज जी) बोलना था। आप बोले, मैं सारे मानस मर्मज्ञों को चैलेंज करता हूँ कि वे रामायण की किसी एक चौपाई का सही सही अर्थ कर दे। किन्तु शर्त यह है कि वह अर्थ, नाना पुराण निगमागम सम्मत होना चाहिए। अपने मन का अर्थ नहीं सुना जायेगा महापुरुष की वाणी के अर्थ को महापुरूष ही सही सही समझ सकता है। कोई कथा वाचक इसे कैसे समझ सकता है। अतः यदि वह महापुरुष नहीं है तो उसे यह कहना चाहिए, जितनी हमारी बुद्धि है उसके अनुसार हम समझा रहे हैं। बिन्दु गोस्वामी ने श्री महाराज जी को एक पर्ची धीरे से लिख कर दिया कि यह चैलेंज आपके लिए थोड़ी ही थी।


🌻महाराज जी स्वयं बताते हैं एक बार रायपुर में हम कीर्तन करा रहे थे। सायंकाल प्रवचन होता था। उस समय हम जगद्गुरु के सिंहासन से बोल रहे थे, कीर्तन में श्री शम्भू शास्त्री भी आते थे। शास्त्री जी महू में हमें संस्कृत पढा चुके थे। आप वहाँ पुलिया आश्रम में प्रधानाध्यापक थे चेहरे और आवाज से हमें पहचान रहे थे। हमारे स्थान पर हमसे मिलने आये, किन्तु भीड़ के कारण उनकी हिम्मत आगे आने की नहीं पड़ रही थी। उन्होंने हमारे एक सत्संगी से कहलाया। महू के शम्भू नाथ शास्त्री आपसे मिलना चाहते हैं। हम तुरन्त उठे, उनके पास गये और उनके चरण छूने को झुके कि उन्होने हमें उठा लिया आैर कहा कि अब तो आप जगद्गुरु हैं। हमारे पूजनीय हैं आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। बाद में हमारे पास आकर बैठे और विभोर होते रहे। हमने उन्हें अपने से ऊँचे स्थान पर बैठाया और उनका उचित सम्मान किया।


🌻एक बार महाराज जी जगद्गुरु होने के पहले रायगढ़ गये थे। वहां 15 दिन का प्रवचन भुजी भवन में रखा गया था एक सत्संगी बताती हैं कि महाराज जी उस समय दुबले पतले श्वेत वस्त्रों आकृत पालथी मारे आँखें बन्द करके बोलते थे। एक बार श्यामा टाकीज के श्यामा जी को विचित्र लीला दिखाई दी। लीला में महाराज जी ने दिखाया कि जीव किस प्रकार प्रतिक्षण अपराध करता है और किस प्रकार भगवान् उसको क्षमा करता रहता है। कई दिन तक उनको स्पष्ट दिखता रहा।


भगवान् जीव को सदा सद्प्रेरणा देता रहता है। वह कभी उसके साथ जबरदस्ती नहीं करता। किन्तु गुरू रूप में वह सद्प्रेरणा अमल न करने पर अनेक प्रकार से सही रास्ते पर लाने के लिए प्रयत्न करता है। कभी डाटता है, कभी स्वयं समझाता है तो कभी दूसरे से समझवाता है, कभी उसके आस पास ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देता है, जिससे साधक सही रास्ते पर चलने को विवश हो जाता है।



🌷॥हमारे प्यारे महाराज जी को बारम्बार प्रणाम॥🌷

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