आशा ही न करनी चाहिए कि कोई बाबा प्रारब्ध काट देगा |

 

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“ जरा सोचिये,जिस अभिमन्यु के मामा परात्पर पूर्णतम पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण एवं जिसके पिता अर्जुन महापुरुष थे एवं जिसकी शादी कराने वाले वेदव्यास थे,जब तीन-तीन महाशक्तियाँ मिलकर भी उस “ अभिमन्यु को नहीं बचा सकीं तब हम दिन रात अपराध करते हुए,ईश्वर से विमुख रहते हुए,स्त्री पुत्रादि में आसक्त रहते हुए कैसे आशा रखते हैं कि कोई बाबा हमारे प्रारब्ध को काट देगा ? हमारा यह दुर्भाग्य है कि हम लोग भारतीय-शास्त्रों को नहीं पढ़ते अतएव इस प्रकार की महान् त्रुटियाँ करते रहते हैं।प्रतिवर्ष हमारे देश में ऐसा नाटक कहीं न कहीं विराट् रुप से होता है और लाखों की भीड़ जमा हो जाती है,केवल इसलिए कि यह बाबा असम्भव को सम्भव कर देता है।अगर ऐसी सामर्थ्य या अधिकार भगवान् या किसी महापुरुष को होता तो अनादिकाल से अब तक अनन्तानन्त बार भगवान् एवं सन्तों के अवतीर्ण होने पर यह विश्व न बना रहता।जब वे सन्त लोग गाली एवं डण्डा खाने को तैयार रहते हैं तब उन्हें यह कहने में क्या लगता है कि हे समस्त विश्व के जीवों,तुम्हारा अभी उद्धार हो जाय।बस,इतना कहने मात्र से काम बन जाय।भोले-भाले लोगों को ठगने वाले ये दम्भी हमारे देश में निर्भयतापूर्वक विचरते हैं और आप लोग भी उनकी खोज में रहते हैं।यह हमारे धर्मप्रधान देश के लिए लज्जा की बात है।यह स्मरण रहे कि ' नाभुक्तं क्षीयते कर्म ',महाभारत कहती है कि ब्रह्मानंदी परमहंस भी उससे नहीं बच सकते तो रसगुल्लानन्दियों को यह आशा ही न करनी चाहिए कि कोई बाबा प्रारब्ध काट देगा।”

                                        - जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज

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