भागवत में उद्धव ने श्रीकृष्ण भगवान् से पूछा, महाराज! श्रेय मार्ग है क्या ? तमाम प्रकार की बातें बाबा लोग, संत लोग कहते हैं, पुस्तकों में भी लिखा है।
श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया,'श्रेय तो केवल एक है, केवल एक यानी मेरी भक्ति।
एक भक्ति से ही मैं प्राप्त हो सकूंगा।' बाकी जितने मार्ग हैं- धर्म है, यज्ञ है, दान है, व्रत है, तपश्चार्य है इन सबका फल स्वर्ग है। यानि भगवान् की शरणागति के अलावा जितने भी मार्ग हैं वो सब स्वर्ग तक ले जाएंगे। स्वर्ग लोक नश्वर है, वहाॅं भी काम, क्रोध, लोभ, मोह हैं, वहाॅं भी दुख है,अशांति है - स्वर्ग के सुख थोड़े समय के लिए ही मिलते हैं, पुण्य समाप्त होने पर फिर मृत्युलोक में आना पड़ता है।
इसलिए स्वर्ग जाने वालों के लिए वेद में कहा है -
प्रमूढ़ा:, वो घोर मूर्ख हैं जो इतना परिश्रम करते हैं स्वर्ग पाने के लिए। तो स्वर्ग लोक नश्वर है और प्रेय मार्ग द्वारा मिलता है और श्रेय मार्ग केवल भगवान की शरणागति है।
भगवान कहते हैं - माया मेरी शक्ति है इसलिए कोई भी माया को जीत नहीं सकता- योगी, ऋषि, मुनि, तपस्वी, कोई हो- अगर मुझे कोई जीतने वाला हो जाय तो माया को जीत सकता है, तो एक इलाज रह गया, मेरी शरण में आ जाओ, मैं माया को इशारा कर दूंगा, छोड़ दे इसको, ये मेरा हो गया। बस एक मार्ग है, यही भागवत कहती है, यही गीता कहती है।
*जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज*
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