एक, ब्रह्मवेवर्तय पुराण में कथा है कि ऐसे ही एक महात्मा उपदेश दे रहे थे मानसी सेवा का, तो एक बिचारा भोला भाला बैठा था, सुन रहा था। गरीब था तो उसने कहा कि भई ये बड़ा अच्छा है। मानसी सेवा किया करेंगे अब तो हम, क्योंकि हमारे पास तो खाने-पीने का भी हिसाब नहीं बैठता है और ठाकुर जी को हम श्रृंगार करें उनको ये सब करें, हो नहीं सकता, बाहर देश के सामान से । तो रोज अपना बैठ करके वह अपने ध्यान में ठाकुरजी को नहला रहा है, धुला रहा है सारे तीर्थों का जल लाके, उसमें अनेक प्रकार के इत्र डाल करके और उसका टैम्प्रेचर मौसम के अनुसार बना करके, किस प्रकार से ठाकुरजी को नहला रहा है, सब अपनी भावना से अपना रोज किया करता था । एक दिन उसने उसी भावना से सोने की थाली मंगाई, उसमे हीरे जड़े हुये थे, उसमें कटोरियाँ रखीं, उसमें एक-एक सामान रखा मन से ही और रख के थाली हाथ में लिया। श्यामसुन्दर सामने बैठे हैं उनके पास ले जाने के लिए जैसे आगे बढ़ा तो देखा कि थाली गरम है तो उसने सोचा कि लगता है कि थाली में रखा हुआ सामान अधिक गरम है तब तो थाली गरम हो गई तो ये श्यामसुन्दर अगर कहीं पहले रोज की तरह आदत पड़ी रही और एक दम से उन्होंने डाल लिया मुँह में, तो मुँह जल जायगा उनका। मैं इसका शिकार हो चुका हूँ बहुत बार। मुझे विश्वास रहता है कि ये लोग खाना जो लायेंगे समझ बूझकर लायेंगे। अभ्यस्त है एक आदमी हमेशा बनाता है। कभी-कभी ये लोग भी गरम-गरम दे देते हैं कोई चीज और हम ठाठ से उसको रख लेते हैं मुँह में। बाद में मालूम पड़ता है। तो वह मन से चिन्तन कर रहा है उसने अपनी उँगली डाली एक कटोरी में कि कितना गरम है वो खाना, तो उँगली जल गयी उसकी। वैसे ही मन से चिन्तन कर रहा है। उँगली जल गई, जलने के बाद उसने कहा अरे! गरम तो है सो है अब उँगली डाल दिया हमने, अब ठाकुरजी को कैसे खिलायेंगे इसको ? अब दूसरा खाना बनायेंगे। इतने में समाधि खुल गई तो चिन्तन की धारा कट गई। आँख खोल दिया, देखा, उँगली जली हुई है, प्रत्यक्ष जली हुई। फिर नारायण ने लक्ष्मी से कहा, कि तुम्हें एक भक्त दिखावें । उन्होंने कहा, हाँ दिखाइये । तो उसको बुलाया और कहा देखो इसकी उँगली जली हुई है, कैसे जली है जरा पूछो ?
मानसी सेवा । सबसे बढ़िया मानसिक रूपध्यान। मानसिक सेवा जैसी इच्छा हो आठों याम करो। कोई परेशानी की बात नहीं और कोई प्रॉब्लम नहीं। कोई सामान बाहर से लाने की आवश्यकता नहीं, तो स्मरण सबसे बड़ा साधन भक्ति का स्वरूप ।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
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