किसी ने रुपया कमाया है, तो यह कह सकता है कि हम कोठी बनवा लेंगे, हम कार खरीद लेंगे, हवाई जहाज खरीद लेंगे । हाँ, यह सब तो कर लोगे तुम, आनंद नहीं पा सकते, दुःख निवृत्ति नहीं होगी । हाँ, वह तो नहीं होगी फिर क्या ? लाभ क्या हुआ यह सब कमाने से तुम्हारे ? और टेन्शन बढ़ गया तुम्हारा । तुमने तो मुसीबत मोल ले ली । अरे ! तुमने यह सब क्यों किया था, खूब पैसा हो जाय - एक करोड़, दो करोड़, चार करोड़, एक अरब, तो फिर क्या होगा ? तो फिर क्या होगा ? आनन्द से सोयेंगे, निश्चिन्त हो जायेंगे । निश्चिन्त ? (हँसी) सब उल्टा हो गया यह तो । हाँ, उलटा हो गया । लेकिन यह है कि अभी एक करोड़ है, अगर दो करोड़ हो जाये तो निश्चिन्त हो जायें । अरे, यही करते-करते तुम्हारे अनंत जन्म बीत गये, तुमको पता नहीं है कि तुम अनंत बार स्वर्ग सम्राट इन्द्र बन चुके हो, तुम्हारे अंडर में थे, यमराज वगैरह । तब तो प्यास बुझी नहीं, तो अब एक करोड़, एक अरब, एक खरब में तुम सोचते हो कि हम निश्चिन्त हो जायेंगे, बड़े भोले हो । भोला माने घोर मूर्ख । हाँ, मामूली मूर्ख हो तो उसका इलाज भी हो सकता है, घोर मूर्ख का सुधार नहीं हो सकता है । तुलसीदास जी हार गये उन्होंने कहा - आदि जगद्गुरु ब्रह्मा भी चाहे किसी को मिल जाय गुरु रूप में तो भी मूर्ख का उद्धार नहीं हो सकता ।
ऐसा मूर्ख - श्रीमद बक्र न कीन्ह केहि प्रभुता बधिर न काहि ।
ये संपत्ति का अहंकार इतना भयानक है कि भगवद प्राप्त महापुरुषों को छोड़कर, कोई भी ऐसा विश्व में न था, न है, न होगा, जो मदान्ध न हो जाये ।
जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
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