चलु मन श्री वृंदावन धाम,

 चलु मन श्री वृंदावन धाम,

     जहं विहरत नित श्यामा श्याम।



श्यामा श्याम सहित ब्रजगाम,

     ब्रजरस बरसावत ब्रजगाम।


मेरे ठाकुर श्यामा श्याम,

     मोहिं न चहिए वैकुंठहुं धाम।


 मेरे ह्वै गए लाड़लि लाल,

     सब विधि हम भये मालामाल।


 चलु मन गहवर कुंज लतान,

     लली चरन चापत भगवान।


 चलु मन श्री बरसानो गांव,

     जहं चाकर बनि रह घनश्याम।


 अलख निरंजन रूप न नाम,

     सोई अंचल पट लिपट्यो बाम।


 चलु चंचल मन गोकुल ग्राम,

     लखु दृग अंचल चंचल श्याम।


भजु 'कृपालु' मन श्यामा श्याम,

     व्रजवनितनि जनु  बनि निष्काम।



     🌷🌷ब्रज रस माधुरी-१🌷🌷


    जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज 🌷🌷

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