हमारे प्रियतम नन्द के लाल हैं, जिनका शरीर नीले बादलों की कांति के समान सुन्दर है तथा जो समस्त रसिकों के सरताज हैं | उनकी आँखें मधु से भरी हुई अलसाई हैं एवं किशोरी जी के मुख रूपी चन्द्रमा के लिए चकोर रूपी हैं | वे अपनी अद्भुत रूपमाधुरी के अवलोकन से परमहंसों के भी मन को मोहित करते हैं | ब्रज की निकुंजों में ब्रजरस – प्रेम – माधुरी को बरसाते हुए उनको सांयकाल से प्रात:काल हो जाता है |
‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि हम तो निरंतर ही गौर – श्याम – रसयुक्त प्रेम – सुधा – माधुरी का पान करते हैं |
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
No comments:
Post a Comment