💫अप्रैल 22, 2025: सुबह की भावपूर्ण साधना के मुख्य आकर्षण🎼


🌷✨जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की जय!✨🌷

जगद्गुरु आदेश:

आत्मनिरीक्षण - 2

तुमने एक साल में अपनी कमाई से कितना शरीर पर खर्च किया और कितना आत्मा के लिए खर्च किया ? हिसाब लगाओ। कितना बाल-बच्चों पर खराब किया कितना भगवान् के निमित्त किया? जो भगवान् के लिए किया - उससे तुम्हारा ही अपना बैंक बैलेंस बन रहा है।

इन सब बातों को गंभीरतापूर्वक सोचना चाहिये।

Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj


अपनी गड़बड़ी को हटाने का और अपने अंदर अच्छाई को लाने का अभ्यास करना चाहिए।


संसारी कामनाओं को मिटाओ, मन पर कण्ट्रोल करो। दूसरों में दोष देखना बंद करो। अपने दोषों पर कण्ट्रोल करो - अच्छा अच्छा चिंतन करके मन को शुद्ध करो। मन को भगवान् और गुरु में लगाओ। माया का संसार है, माना सब दोषी हैं। जिन्होंने भी भगवत्प्राप्ति नहीं की है, उन सबके अनंत पाप संचित कर्म के रूप में जमा हैं। लेकिन हमको तो अपना मन शुद्ध करना है। दूसरे को क्या देखना ? ये समझ लो सब हमारे जैसे हैं। बात खतम। जब माया हावी है तो सब दोष हैं।


हर साधना का यही तो परिणाम है - अंतःकरण की शुद्धि - कितना भगवान् में मन लगा? भगवान् कितने सुन्दर लगे ? कितना उनको पाने की ललक हुई? हरि-गुरु में कितना अनुराग हुआ और कितना संसार से विराग हुआ ? यही तो पहचान है अपने उत्थान पतन का।


समय बीता जा रहा है। आज मैंने गन्दा गन्दा चिंतन किया भगवान् का चिंतन नहीं किया - ऐसी फीलिंग होनी चाहिए - 30 साल का हो गए 50 का - आगे नहीं बढ़ रहे। न शास्त्र की बात मानी न गुरु की। एक दिन फट - यमराज का ऑर्डर आ गया - मानव देह गया और सब अहंकार चूर हो गया। अब परिणाम भोगो !


इसलिए गड़बड़ी का न चिंतन करो न श्रवण करो। कोई किसी की बुराई करे तो ऐसे भागो जैसे सांप को देखकर भागते हो। वैसे भी बाहर के व्यवहार को देखकर हम किसी को नहीं पहचान सकते। मानव देह का कोई भरोसा नहीं है और अगर हो, तो भी हमें भगवत्प्राप्ति का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। आलस, लापरवाही, दूसरे में दोष देखना, परनिंदा सुनना - ये सब बंद करके भगवद विषय कमाने के लिए क्षण क्षण हरि गुरु का चिंतन, उनके लिए तन-मन-धन से सेवा करने की प्लानिंग प्रैक्टिस करो - ये कमाई है । संसार सम्बन्धी तन-मन-धन का कम से कम प्रयोग हो - जितने में तुम्हारा पेट भर जाये - उससे ज़्यादा प्रयोग करने से दंड मिलता है।


अपने आप को रीड करो - सोचो, फील करो और सुधार करो - तो धीरे-धीरे डेली आगे बढ़ते जाओगे। हमको सिर्फ अपना सोचना चाहिए - सिर्फ कमाने की बात सोचो। कम से कम संसार में व्यवहार करो। गलत व्यवहार तो होने ही मत दो। इससे अहंकार बढ़ेगा, दीनता छिन जायेगी, भक्ति समाप्त हो जाएगी और मन गन्दा हो जायेगा। जब हम ही नहीं संभलेंगे तो गुरु क्या कर सकते हैं ? सावधान होकर कमाई पर ध्यान दो, गँवाओ नहीं - बचे रहो।


अब हम लोगों को समझ लेना चाहिए कि हमारा उत्थान पतन कहाँ है और आगे के लिए भी सावधान रहना चाहिए।

कीर्तन:

- हरे राम संकीर्तन

- दीन की सुन लो दीनानाथ (प्रेम रस मदिरा, दैन्य माधुरी, पद सं. 48)

- गुरुदेव शरण में आई, अब तो लो मोहिं अपनाई (युगल माधुरी, पृष्ठ सं. 1, संकीर्तन सं. 1)

- राधे गोविन्द गोविन्द राधे, राधे गोविन्द गोविन्द राधे (उसी धुन में)

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