🌷✨जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की जय!✨🌷
जगद्गुरु आदेश:
साधक के लिए दो मुख्य बातें -
1. खाली समय में, कहीं भी, कभी भी राधे नाम का श्वास-श्वास से जाप कीजिये। श्वास खींचते समय सोचो 'रा' और छोड़ते समय 'धे'। नहीं तो मन अभ्यास वश गंदे संसार का ही चिंतन करेगा, और अगर कोई दूसरा बगल में बैठा हो तो उससे निरर्थक बातें करने लगोगे।
2. कम से कम बोलो, जितने में काम चल जाये। क्योंकि अधिक बोलने में कोई न कोई वाक्य गड़बड़ निकल जाएगा। इससे नुकसान हो जाएगा। सोचने में सिर्फ आपका नुकसान है, बोलने में डबल नुकसान है क्योंकि बोलने से दूसरे का भी नुकसान होगा। और हो सकता है कि दूसरा इन्सान आप से विरोध पर तुल जाए। प्राय: कहने वाला किसी बात को अधिक बढ़ाकर बोल देता है। अपने को सही सिद्ध करने के लिए कोई भी किसी बात का सही निरूपण नहीं करता। ऐसे बोलना झूठ भी है और हानिकारक भी है। दुनिया में जितनी लड़ाइयाँ होती हैं, उसमें 99.9% कारण है बोलना। जितना अधिक जो बोलेगा उतनी अधिक उसको टेंशन होगी, उसके लड़ाई झगड़े बढ़ेंगे, और उससे द्वेष करने वाले खड़े हो जाएँगे। ये मत सोचना कि हमारे बोलने से वो हार जाएगा। कोई नहीं हारता। अगर घर में कोई आपसे गुस्से में बोले तो चुप रहो, क्योंकि अगर तुम बहस करने लगोगे तो बात और आगे बढ़ जाएगी। कम बोलने से आपका टाइम बचेगा, आत्मा को शांति मिलेगी, क्रोध आदि तमाम बीमारियाँ जो बोलने से होती हैं वो नहीं होंगी, बहुत फायदा होगा। तो कम बोलने का अभ्यास करो।
किसी चीज़ को बार-बार करो तो वो अपने आप होने लगती है, इसको आदत या हैबिट कहते हैं। इन दो बातों को अमल में लाने की गाँठ बाँध लो। इसे करने में पहले पहल मेहनत पड़ेगी, लेकिन फिर अपने आप होने लग जाएगा। महीने भर अभ्यास कर लो, आपका बहुत बड़ा कल्याण हो जाएगा।
कीर्तन:
- राधा गोविन्द गीत (भाग 2, अध्याय - श्री राधा नाम महिमा)
- हमारे मन भाईं भानुलली (प्रेम रस मदिरा, सिद्धान्त माधुरी, पद सं. 133)
- श्री राधे श्री राधे प्रेम अगाधे श्री राधे
'रा' सुनि सोचे पिय गोविंद राधे।
अब 'धे' कहेगा रोम रोम हर्षा दे॥
कृष्ण कहें जो कोउ गोविंद राधे।
‘रा' कहे वाय देउँ भक्ति बता दे॥
पुनि जब 'धा' कहे गोविंद राधे।
पाछे पाछे चलूँ राधा नाम सुना दे॥
जिह्वा पै राधे नाम गोविंद राधे।
कानों में राधे गुनगान सुना दे॥
सांस खींचो 'रा' कहु गोविंद राधे।
सांस छोड़ो 'धे' का अभ्यास करा दे॥
खाते पीते चलते फिरते गोविंद राधे।
राधे नाम जनि भूलो पल छिन आधे॥
चलो मन बरसानो गोविंद राधे।
तहँ राधेरानी नाम गुनगन गा दे॥
माया ते न डरो मन गोविंद राधे।
राधे राधे बोल बोल माया को डरा दे॥
राधा पद अरविंद गोविंद राधे।
मकरंद हित मन मधुप बना दे॥
राधा तेरे उर में हैं गोविन्द राधे।
बनि जा पतंग डोरी राधे को थमा दे॥
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