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*सुश्री ब्रज देवी प्रथम प्रचारिका बनीं। (1963)*
सन् 1963 में श्री महाराज जी मथुरा आये। वहाँ वह सुधा सेठ व उषा सेठ के घर पर रुके हुए थे। सदा की भाँति यहाँ भी प्रातः 8 से 10 बजे, दोपहर 3 से 5 व रात्रि 8 से 11 बजे तक नियमित रूप से भावपूर्ण सत्संग होता था। मथुरा निवासिनी सुश्री उषा सेठ एक उच्च कोटि की भक्त व श्री महाराज जी की विशेष कृपा पात्र थीं। वह मथुरा के ही एक कॉलेज में अँग्रेजी की प्रवक्ता थीं। उनके सद्व्यवहार व प्रतिभा से प्रभावित होकर श्री महाराज जी ने बहुत पहले ही यह निश्चय कर लिया था कि वह उषा जी को प्रचारिका बनायेंगे। तदनुसार उनका प्रशिक्षण भी प्रारंभ कर दिया था। अतः इस बार आगरा आकर श्री महाराज जी ने उषा सेठ को वस्त्र प्रदान करके व ब्रज देवी आध्यात्मिक नाम प्रदान कर के प्रामाणिक तौर पर प्रचारिका बना दिया। ये श्री महाराज जी की प्रथम प्रचारिका थीं।
तदुपरान्त जब गुरु आरती का समय आया, उन्हें ही आरती करने को कहा गया। श्री महाराज जी तख्त पर बनाये गये अपने आसन पर विराजमान थे। समस्त भक्त जन आरती का गायन कर रहे थे व ब्रज देवी जी भाव विभोर होकर गुरु-आरती कर रही थीं। कुछ क्षणों के उपरान्त उनके शरीर में कम्प सात्विक भाव का उद्रेक हुआ। आँखें मुँद गईं व शरीर चेतनाशून्य सा होने लगा। तभी आगे बढ़कर किसी भक्त ने उनके हाथ से आरती का थाल ले लिया और वह मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ीं। उनकी अवस्था इतनी उच्चकोटि की थी कि यदि श्री महाराज जी उनका स्पर्श भी कर देते थे तो उनमे सात्विक भावों का उद्रेक होने लगता था। इनके प्रवचन ओजस्वी व बहुत प्रभावशाली होते थे। इनका स्वभाव अत्यन्त मधुर था।
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