🌷✨जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की जय!✨🌷
जगद्गुरु आदेश:
दो को जनि भूलो मन गोविंद राधे।
एक मौत दूजो हरि गुरु को बता दे॥
दो तत्त्व ज्ञान को सदा याद रखना चाहिये -
1) मृत्यु और
2) हरि गुरु की भक्ति।
मौत का ध्यान हमारे मस्तिष्क में कभी-कभी आता है जब हम किसी को मरा हुआ देखते हैं। उस समय मनुष्य थोड़ा सोचता है कि हमको भी मरना होगा एक दिन। लेकिन ये बात हम सदा नहीं सोचते। सिद्ध महापुरुषों के अलावा कोई ये बता नहीं सकता कि हम अमुक तारीख को मरेंगे।
महाभारत में जब यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया - 'किमाश्चर्यं ?' संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ? तो उस समय युधिष्ठिर ने उत्तर दिया था - अहन्यहनिभूतानि गच्छन्तीह यमालयम्। शेषा: स्थिरत्वमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम्।
अर्थात् प्रतिदिन लोगों को अपनी आँखों के सामने इस संसार से जाते हुए, मरते हुए देखकर भी शेष लोग यही समझते हैं कि हम तो अभी नहीं मरेंगे। इससे बड़ा आश्चर्य और कोई नहीं हो सकता।
मृत्यु को सदा याद रखने से लापरवाही नहीं होगी, हम साधना में उधार नहीं करेंगे।
जिस को कोई संत नहीं मिला, न कभी जाना उसने कि हम कौन हैं, हम को क्या लक्ष्य रखना चाहिए, उसके माँ बाप ने यही सिखाया हमेशा कि कमाओ खाओ, बाल बच्चों से प्यार करो और मर जाओ - यही किया उसने सारा जीवन - वो तो बेचारा अभागा है। लेकिन हम तो जान गए हैं - भगवान् की ओर से हम पर ये तीन बड़ी बड़ी कृपाएँ हो गई हैं - 'मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुष संभव:' -
1. मानव देह,
2. महापुरुष मिलन
3. उनके द्वारा तत्त्व ज्ञान हो जाय।
अब चौथी कृपा तो हम को ही करनी है - वह है साधना।
कीर्तन:
- जेंवत मम सद्गुरु (जगन्नाथ) सरकार (ब्रज रस माधुरी, भाग 1, पृष्ठ सं. 244, संकीर्तन सं. 132)
- जय जगन्नाथ जय जगन्नाथ जय जगन्नाथ स्वामी जय जगन्नाथ
जय बलदेवा जय सुभद्रा जय बलदेवा जय सुभद्रा
जगन्नाथ स्वामी नयन पथगामी नयन पथगामी भवतु मे
- हो रसिया ! कस सुरति बिसारी (प्रेम रस मदिरा,विरह माधुरी, पद सं. 214)
- हाय ! हिय, कैसो तव अक्रूर (प्रेम रस मदिरा, विरह माधुरी, पद सं. 213)
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