Shri Maharajji in the old sadhana bhawan in Mangarh



Sometimes, or on any occasion, Shri Maharajji would dress up in unique outfits. Sometimes, He would dress like a 'seth' or a 'sardar ji' etc, and whenever he used to travel, he used to wear white clothes. So that people would not think that he is a baba ji, or any Holy person.

Here, Shri Maharajji is wearing an ordinary t-shirt which was gifted to Him by a devotee from America (one of Prakashanand Ji's satsangees). Shri Maharajji loved it so much that He wore it almost the whole day.

One satsangee asked Maharajji if we could take His photo. He jokingly replied saying "ye bhi puchne ki bat hai! photo le isiliye to t-shirt pehene hai!" (Is this even something to ask! I wore this t-shirt so that you people would take my photo!)

Hence this photo was taken by Badi Didi

(Mangarh, 1979)

Copied# janaki prasad bhaiya ji page

इक आई मालिनि स्वामिनी !|


इक आई मालिनि स्वामिनी !|
रूप अनूप लखी सखि जो ही, मोही सो ही भामिनी |
झूमति झुकति चलति मन भावति, लजवति गति गजगामिनी |
तनु सोरह श्रृंगार सुशोभित, नख शिख छवि अभिरामिनी |
श्यामल रंग अंग प्रति अंगनि, वारत रति – पति कामिनी |
लिये पारिजातादिक फूलनि, माल अनेकन नामिनी |
लली ‘कृपालु’ कहीं ‘लै आवहु, कहहु इहैं रह यामिनी’  ||

भावार्थ    –     मालिन भेषधारी श्यामसुन्दर के संकेत से एक सखी किशोरी जी से कहती है कि हे स्वामिनी जू ! एक ऐसी मालिन आई है, जिसकी अनुपम छवि को जो भी सखी देखती है वही मोहित हो जाती है | वह झूमती एवं झुकती हुई इतनी सुन्दर गति से चलती है कि मतवाले हाथी की चाल भी लज्जित हो जाती है |  वह सोलहों श्रृंगार से सुशोभित है, वह सर्वांग सुन्दरी है | उसका श्याम रंग है | उसके अंग अंग पर कामदेव अपनी रति को न्यौछावर करता है | वह कल्पवृक्ष आदि अनेक नाम वाले फूलों की मालाएँ लिये हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि किशोरी जी ने कहा कि उसको यहीं ले आओ और कहो कि आज रात भर यहीं विश्राम करे  |

( प्रेम रस मदिरा      लीला   –   माधुरी )
     जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित  -  राधा गोविन्द समिति

प्रश्न ३२ :- महाराजजी ! साधना में कैसे आगे बढे़ं ?

प्रश्न ३२ :- महाराजजी ! साधना में कैसे आगे बढे़ं ?

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर :-

मन ने हमारे अनन्त जन्म बरबाद किये । अब मन कर रहा है ऐसा करें , बस हो गया । देखो यहाँ जितने लोग उठते हैं सबेरे तीन बजें , साढे़ तीन बजे और कीर्तन करते हैं , ये अपने घर जाकर तीन बजे उठते है क्या ? कितने आदमी उठते हैं । और जो नहीं उठते हैं वो क्यों नहीं उठते ? मन के गुलाम । अरे! अकेले ही तुम अपना भगवान् का ध्यान करो या इतनी सारी पुस्तकें हमने बना दी हैं पढ़ो । मन को लगाओ भगवान् में , किसी प्रकार से लगाओ । नहीं जी अब मन कह रहा है सोओ , कोई महाराज जी थोड़े ही हैं डाँटेंगे । सो रहे हैं अपना छः बजे उठे , सात बजे उठे । तमोगुण में सुख मिलता है । पढाई और साधना एक बात है । जैसे बड़े - बड़े आदमियों के लडके अरबपतियों के लड़के , प्राइममिनिस्टर के लड़के भी परीक्षा के लिये पढ़ते हैं । जागते है रात - रात भर । अगर वो मन के बहकावे में आ जायें - अरे चलो सोओ , हटाओ , जो होगा देखा जायेगा । तो देखा क्या जायेगा , फेल हो जाओगे । और क्या देखा जायेगा । जितने श्वास बचे हैं मृत्यु के पहले वाले उनको काम में लेना चाहिये । चाहे हजार लोग बैठे हो हम श्वास-श्वास से 'राधे-राधे' बोलें । कौन क्या जानेगा क्या कर रहे हैं हम । ये अवसर फिर नहीं मिलेगा । मनुष्य का शरीर ,भारतवर्ष में जन्म और तत्त्वदर्शी का मिलना , तत्त्वज्ञान प्राप्त कर लेना , सब बनाव तो बन गया और अब कौन सी कृपा बाकी है भगवान् की । अब तो तुम्हारी कृपा आवश्यक है । भगवान् की तो सब हो गई । 'लापरवाही' बस और कुछ बात नहीं । यें लापरवाही जो मैं शब्द बोल रहा हूँ , उसको सोचो ,बार - बार । इसमें पच्चीसो बीमार हैं किसी की कमर ख़राब , किसी का पैर खराब ,किसी का कुछ खराब लेकिन जब मन को डाँट करके लगाते हैं आप लोग तो आँखों में आसूँ भी आ रहे है कीर्तन भी हो रहा है । और अगर ये सब न करो , न हो , महाराज जी भी न हो सत्संग भवन में और आप कमरे में अपने बैठे हों , अरे सर दर्द हो रहा है , अरे लेट जायें , लेट गये , फिर सो गये । क्या मिला ? मन के गुलाम । सब उत्थान और पतन का कारण मन है । केवल मन । इसी मन को जिसने दुश्मन मान लिया और उसके ऊपर लगाम कस ली , वो महापुरुष हो गया । और क्या है महापुरुषों के पास । वही हाथ , पैर ,नाक , कान , आँखे उनके भी है हमारे भी है । उन्होंने प्रतिज्ञा कर लिया ,मैं जो कहूंगा वो होगा और मैं वही कहूँगा जो गुरु ने बताया है । उसके अनुसार मन को गवर्न करूँगा । बस । अभ्यास कर ले कुछ दिन जबरदस्ती , उसके बाद आदत पड़ जायेगी । पहले शौक से कोई व्यक्ति शराब पीता है , कोई व्यक्ति सिगरेट पीता है । ऐसा नहीं होता कि एकदम से हमारी प्यास हो गई शराब की कि शराब लाओ । ऐसा कहीं विश्व में हुआ है ? पहले कुसंग से अपने साथियों के कहने से और ऐसे ही शौक से पिया कि देखें तो , क्या बात है शराब में , सब बड़े - बड़े लोग उसके चक्कर में पड़े है । जिनके पास तमाम वैभव है । उसमें सुख नहीं मिलता उनको तभी तो , शराब पीते होंगे । डेली , शराब पी के लोग सोते हैं बड़े - बड़े अरबपति । बस एक बार पिया , तो शराब का तो अपना काम है नशा करना , बस उसी को आनन्द मान लिया । और रोज पीने लगा , फिर पियक्कड़ हो गया ।

तो संसार में भी सब काम पहले बेमनी से करते हैं । फिर आदत पड़ जाती है । ऐसे ही पहले जबरदस्ती मन को रोको ,गलत चिन्तन न करें , एक सैकिण्ड भी खराब न होने दे । और उसके लिये पच्चीसों साधन हैं । हरि गुरु का चिन्तन ; चिन्तन से थक गये तो पठन । एक - एक विषय पर सैकड़ों , हजारों पद हमने लिख दिये हैं ,बना दिये हैं । एक को पढो , गाओ । फिर बोर हो गये , दूसरा उठाओ , तीसरा उठाओ ,लापरवाही छोड़ो ।

पुस्तक :- प्रश्नोत्तरी ( भाग ३ )
पृष्ठ संख्या :- ७८ , ७९ एवं ८०

🌼जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज🌼

सत्संग का फल


एक था मजदूर। मजदूर तो था, साथ-ही-साथ किसी संत महात्मा का प्यारा भी था। सत्संग का प्रेमी था। उसने शपथ खाई थी! मैं उसी का बोझ उठाऊँगा, उसी की मजदूरी करूँगा, जो सत्संग सुने अथवा मुझे सुनाये. प्रारम्भ में ही यह शर्त रख देता था। जो सहमत होता, उसका काम करता। एक बार कोई सेठ आया तो इस मजदूर ने उसका सामान उठाया और सेठ के साथ वह चलने लगा। जल्दी-जल्दी में शर्त की बात करना भूल गया। आधा रास्ता कट गया तो बात याद आ गई। उसने सामान रख दिया और सेठ से बोला:- “सेठ जी ! मेरा नियम है कि मैं उन्हीं का सामान उठाऊँगा, जो कथा सुनावें या सुनें। अतः आप मुझे सुनाओ या सुनो।
सेठ को जरा जल्दी थी। वह बोला- “तुम ही सुनाओ।” मजदूर के वेश में छुपे हुए संत की वाणी से कथा निकली। मार्ग तय होता गया। सेठ के घर पहुंचे तो सेठ ने मजदूरी के पैसे दे दिये। मजदूर ने पूछा:- “क्यों सेठजी ! सत्संग याद रहा?” “हमने तो कुछ सुना नहीं। हमको तो जल्दी थी और आधे रास्ते में दूसरा कहाँ ढूँढने जाऊँ? इसलिए शर्त मान ली और ऐसे ही ‘हाँ… हूँ…..’ करता आया। हमको तो काम से मतलब था, कथा से नहीं।”भक्त मजदूर ने सोचा कि कैसा अभागा है ! मुफ्त में सत्संग मिल रहा था और सुना नहीं ! यह पापी मनुष्य की पहचान है। उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे. अचानक उसने सेठ की ओर देखा और गहरी साँस लेकर कहा:- “सेठ! कल शाम को सात बजे आप सदा के लिए इस दुनिया से विदा हो जाओगे। अगर साढ़े सात बजे तक जीवित रहें तो मेरा सिर कटवा देना।”
जिस ओज से उसने यह बात कही, सुनकर सेठ काँपने लगा। भक्त के पैर पकड़ लिए। भक्त ने कहा:- “सेठ! जब आप यमपुरी में जाएँगे तब आपके पाप और पुण्य का लेखा जोखा होगा, हिसाब देखा जाएगा। आपके जीवन में पाप ज्यादा हैं, पुण्य कम हैं। अभी रास्ते में जो सत्संग सुना, थोड़ा बहुत उसका पुण्य भी होगा। आपसे पूछा जायेगा कि कौन सा फल पहले भोगना है? पाप का या पुण्य का ? तो यमराज के आगे स्वीकार कर लेना कि पाप का फल भोगने को तैयार हूँ पर पुण्य का फल भोगना नहीं है, देखना है। पुण्य का फल भोगने की इच्छा मत रखना। मरकर सेठ पहुँचे यमपुरी में।
चित्रगुप्तजी ने हिसाब पेश किया। यमराज के पूछने पर सेठ ने कहा:- “मैं पुण्य का फल भोगना नहीं चाहता और पाप का फल भोगने से इन्कार नहीं करता। कृपा करके बताइये कि सत्संग के पुण्य का फल क्या होता है? मैं वह देखना चाहता हूँ।” पुण्य का फल देखने की तो कोई व्यवस्था यमपुरी में नहीं थी। पाप- पुण्य के फल भुगताए जाते हैं, दिखाये नहीं जाते। यमराज को कुछ समझ में नहीं आया। ऐसा मामला तो यमपुरी में पहली बार आया था। यमराज उसे ले गये धर्मराज के पास। धर्मराज भी उलझन में पड़ गये। चित्रगुप्त, यमराज और धर्मराज तीनों सेठ को ले गये। सृष्टि के आदि परमेश्वर के पास । धर्मराज ने पूरा वर्णन किया। परमपिता मंद-मंद मुस्कुराने लगे। और तीनों से बोले:- “ठीक है. जाओ, अपना-अपना काम सँभालो।” सेठ को सामने खड़ा रहने दिया। सेठ बोला:- “प्रभु ! मुझे सत्संग के पुण्य का फल भोगना नहीं है, अपितु देखना है।”
प्रभु बोले:- “चित्रगुप्त, यमराज और धर्मराज जैसे देव आदरसहित तुझे यहाँ ले आये और तू मुझे साक्षात देख रहा है, इससे अधिक और क्या देखना है?”
       एक घड़ी आधी घड़ी,आधी में पुनि आध।
       तुलसी सत्संग साध की, हरे कोटि अपराध।।
जो चार कदम चलकर के सत्संग में जाता है, तो यमराज की भी ताकत नहीं उसे हाथ लगाने की।
सत्संग-श्रवण की महिमा इतनी महान है. सत्संग सुनने से पाप-ताप कम हो जाते हैं। पाप करने की रूचि भी कम हो जाती है। बल बढ़ता है दुर्बलताएँ दूर होने लगती हैं।
गुरू प्यारी साध संगत जी सभी सतसंगी भाई बहनों और दोस्तों को हाथ जोड़ कर प्यार भरी राधे राधे ।।