ठाकुर जी की महावर सेवा



एक दिन प्रियतम श्रीकृष्ण श्री ललिता जी से विनम्र हो से कहा-
मेरी एक विनती है मैं आज प्रिया जी के चरणों में महावर लगाने की सेवा करना चाहता हूंl मुझे श्री चरणो मैं महावर लगाने का अवसर दिया जाए।

प्रियतम की बात सुनकर ललिता जी बोली – क्या आप महावर लगा पाऐंगे?

तो प्रियतम ने कहा – मुझे अवसर तो देकर देखो, मैं रंगदेवी से भी सुंदर उत्तम रीति से महावर लगा दूंगा ।

श्री ललिता जी ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया रंग देवी से कहा – कि आज श्री चरणो मैं महावर लगाने की सेवा प्रियतम करेंगे।

प्रिया जी के स्नान के बाद सुदेवी जी ने कलात्मक ढंग से प्रिया जी की वेणी गूँथ दी।

विशाखा जी ने प्रियाजी के कपोलों पर सुंदर पत्रावली की रचना कर दी। अब प्रिया जी के चरणों में महावर लगाना था।
रंगदेवी जी को ललिता जी ने कहा – आज महावर की सेवा प्रियतम करेगे।

प्रियतम पास में ही महावर का पात्र लेकर खड़े थे और विनती करने लगे आज महावर की सेवा में करू ऐसी अभिलाषा हैl


प्रिया जू ने कहा – लगा पाएंगे? उस दिन वेणी तो गूँथ नहीं पाये आज महावर लगा पाएंगे?

प्रियतम ने अनुरोध किया – अवसर तो दे के देखें।
प्रिया जू ने नयनों के संकेत से स्वीकृति दे दी और मन ही मन सोचने लगीं की प्रेम भाव में लगा नहीं पाएंगे,  स्वीकृति मिलते ही प्रियतम ने प्रिया जी चरण जैसे ही हाथ में लिए, श्री चरणो की अनुपम सुंदरता कोमलता देखकर श्याम सुंदर के हृदय में भावनाओं की लहर आने लगीं।

प्रियतम सोचने लगे, कितने सुकोमल हैं श्रीचरण, प्यारी जी कैसे भूमि पर चलती होंगी?

कंकड़ की बात तो दूर, भय इस बात का है ककि धूल के मृदुल कण भी संभवतः श्री चरणों में चुभ जाते होंगे।

तब श्याम सुंदर ने वृंदावन की धूलि कण से प्रार्थना‌ की कि जब प्रिया जी बिहार को निकलें तो अति सुकोमल मखमली धूलि बिछा दिया करो और कठिन कठोर कण को छुपा लिया करो।
प्रियतम भाव बिभोर सोचने लगे कि श्री चरण कितने सुंदर, सुधर, अरुणाभ, कितने गौर, कितने सुकोमल हैं, मुझे श्री चरणों को स्पर्श का अवसर मिला।
प्रियतम ने बहुत चाहा पर महावर नहीं लगा पाये, चाहकर भी असफल रहे।

ऐसी असफलता पर विश्व की सारी सफलता न्योछावर, अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक शिरोमणि जिनके बस में सब कुछ है।
हर कार्य करने में अति निपुण हैं उनकी ऐसी असफलताओं पर बलिहार जाऊं।

                       जय हो प्रभु
            श्री गिरिराज धरन की जय

अहा!





अहा! आज हमने ऐसा किया, गुरु की आज्ञा का पालन किया। ये अहंकार न हो, इसके लिए कहा जा रहा है,अर्पित कर दो।
जो कुछ किया, महाराज! आपकी कृपा से किया, वरना मैं एक बार ‘राधे’ न बोलता। आप जितने बैठे हैं, सब लोग अकेले में सोचें, अगर ये 'कृपालु' न मिला होता, तो हम लोग न जानते, कौन हैं राधे, कौन है श्याम, और क्या है भक्ति और क्या है ज्ञान और क्या होता है दान।
बस, मम्मी-डैडी और बीबी-पति, बच्चे, नाती-पोते और मर गए, बस। यही करते रहते!

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज

बड़ो कब ह्वैहैं हमरो लाल।

बड़ो कब ह्वैहैं हमरो लाल।
कब चलिहहिं घुटुवन बल आँगन, करिहैं हमहिं निहाल।
कब कर–अँगुरि पकरि ह्वै ठाढ़ो, चलिहैं लटपट चाल।
कब तुतरिन बतियन कछु मोते, बोलिहहिं वचन रसाल।
कब दृग जल भरि मम अंचल गहि, कछु माँगिहहिं गोपाल।
कब ‘कृपालु’ मोते कह ‘मैया,’ इमि कहि चूमति गाल।।

भावार्थ:– यशोदा अपने लाल को गोद में लेकर वात्सल्य–प्रेम में विभोर होकर विधाता से कामना करती हैं,और कहती हैं कि वह दिन कब आयेगा जब मेरे लाल बड़े हो जायेंगे। कब हमारे आँगन में घुटनों के बल चलते हुए हमें निहाल करेंगे। कब हमारे हाथ की अँगुलियों के सहारे खड़े होकर लड़खड़ाते हुए चलेंगे। कब हमसे तोतली भाषा में मधुर–मधुर बाल–विनोद–युक्त बातें करेंगे। कब अपनी आँखों में आँसू भरकर हमारा अंचल पकड़े हुए कोई वस्तु माँगेंगे। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि मुझे मेरा लाल कौन सी घड़ी में ‘मैया’ कहेगा? इसके पश्चात् वात्सल्य–प्रेम में विभोर यशोदा कुछ भी न कह सकी। इतना ही कहकर बार–बार अत्यन्त प्यार से अपने लाल के दोनों गाल चूमने लगीं।

(प्रेम रस मदिरा:-श्री कृष्ण–बाल लीला–माधुरी)
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा  रचित

🙏🙏  राधे राधे 🙏🙏

अपनापन रखना, मेरे घनश्याम |


अपनापन रखना, मेरे घनश्याम |
घड़ी - घड़ी पल - पल नाम तिहारो, रटे मेरी रसना मेरे घनश्याम |
लली - लाल दोउ दै गरबाहीं, हमारे हिये बसना, मेरे घनश्याम |
भाव - हिँडोरे डारि हिये में, झुलावूँ नित झुलना, मेरे घनश्याम |
दै उपहार हार अँसुवन को, बना लूँ तुझे अपना, मेरे घनश्याम |
कैसेहुँ करि ‘कृपालु’ प्रभु अपनो, पुरवो मम सपना, मेरे घनश्याम  ||

भावार्थ  -   हे मेरे श्यामसुन्दर ! अपने अकारण करुण विरद की सदा ही रक्षा करना अथवा हे मेरे श्यामसुन्दर ! तुम मुझे सदा अपना ही समझना | हे श्यामसुन्दर ! मेरी यही कामना है कि मेरी जिह्वा प्रत्येक क्षण तुम्हारे नामों की रटना लगाया करे | हे श्यामसुन्दर ! हे वृषभानुनन्दिनी ! तुम दोनों गले में हाथ डाले हुए हमारे हृदय में नित्य ही निवास करना | हृदय में विविध भावों के झूले में मैं तुम दोनों को नित्य ही झुलाया करूँ एवं आँसुओं की माला की भेंट देकर मैं तुमको सदा के लिए अपना बना लूँ | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि हे श्यामसुन्दर ! किसी भी प्रकार से मुझको अपना बनाकर मेरी इस कामना को पूर्ण करो  |

( प्रेम रस मदिरा   प्रकीर्ण  –  माधुरी )
   जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
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