गुरू ऋण




तुम्हारा मेरा इस जीवन का नहीं...कई-कई जन्मो का सम्बन्ध है....मैं तुम्हारे पिछले कई जन्मो से परिचित हूँ.....

और हर जीवन में तुम्हे पुकारा है...तुम्हे आवाज दी है....
जीवन की पगडण्डी पर चलने का आह्वान किया है.....
और तुम्हे समझाने की कोशिश की है...
की तुम मेरी ऊँगली पकड़ कर चलो...
मैं तुम्हे निश्चित ही पूर्णता तक पंहुचा दूंगा....
पर हर बार तुमने धोखा दिया है...
हर बार तुम्हारे पैर फिसले है....
हर बार तुम्हारे होंठो पर झूठ और स्वार्थ की परते बिछी...
हर बार तुमने खुद ही अपना हाथ छुड़ा कर संसार के दलदल में फंसा लिया....
और मैं पुकारता रहा...तुम अनसुना करते रहे..
मैं आवाज देता रहा और तुम कान में ऊँगली ढाल कर बैठे रहे...
हर बार मैंने प्राण-तत्व समर्पित किये....
और हर बार तुम अनजान से भटकते रहे......
और मेरा ऋण तुम पर चढ़ता रहा....
और अब यह समय इस ऋण को चुकाने का है...

जय जय श्री राधे

Leela


एक दिन श्याम सुंदर श्री राधा रानी की श्रृंगार कक्ष में गए और वहां एक पेटी जिसमें राधा रानी के सारे अलंकार आभूषण रखे थे उस को खोला एकांत ना मिलने के कारण बहुत दिनों से सोच रहे थे आज मौका मिला भंडार गृह में कोई नहीं था एकांत था

सबसे पहले श्यामसुंदर जी ने राधा रानी का हरिमोहन नामक कंठ हार निकाला और अपने हृदय से लगाया और सोचने लगे यह हार कितना सौभाग्य शाली है जो हमेशा प्रिया जी के हृदय के समीप रहता है हमेशा उनकी करुणामयी धड़कन को सुनता है उनकी हर धड़कन में श्याम श्याम नाम को प्रतिपल सुनता है कैसा अद्भुद सौभाग्य है इस हार का जो मेरी किशोरी जी के ह्रदय के समीप रहता है फिर शाम को अपनी अधरों से लगा कर और अपने नैनों से लगाकर रख दिया

फिर प्रिया जू की मांग की मोतियों की माला को अपने हृदय से लगाया और कहा मोतियों की माला हे मेरा जीवन है इसे प्रिया जी अपनी सिंदूर रेखा भरी मांग पर धारण करती हैं उसी से मेरा जीवन अस्तित्व है इसकी सौभाग्य की कैसे वंदना करो कैसे वंदना करूं अपने कपोलो से लगा कर भाव बिभोर हो गए नयन सजल हो गये प्रियतम के

फिर श्याम सुंदर ने प्रिया जी की नथ को अपने हाथों से उठाया और कहने लगे नथ की सौभाग्य की बात कैसे करूं यह नथ प्रेम रीति से प्रिया जी के कोमल कपोलो ( गालो) का अखंड सानिध्य प्राप्त् है कैसे प्रिया जी के कपोलो की कांति स्पर्श प्राप्त है

कैसे नथ की सुधरता का वर्णन करू

श्री प्रिया जू के नथ में प्रभाकरी नाम का मोती है यही मेरे जीबन का उजाला है

फिर श्यामसुंदर ने विपक्ष मद माँर्दिनी नामक राधा जी की अंगूठियों को अपने हृदय से लगा लिया और कहने लगे इन की अंगूठियों को पहनकर राधा रानी के हाथ सभी भक्तों को प्रेम और कृपा का दान करते हैं कैसा अनुपम सौभाग्य है अंगूठियों का जिन्हें प्रिया जू अपने वो कोमल हाथों में धारण करती हैं तो फिर श्याम सुनाने अंगूठियों को अपनी उंगलियों में पहन लिया

इन अंगूठियों का केसा अनुपन सोभाग्य है जो प्रिया जी की करुणामयी कृपा मयी कोमल हाथो का सानिंध्य प्राप्त है

फिर श्याम सुंदर श्री राधा रानी के नूपुर पायलों को अपने हाथों से उठाया और अपने हृदय से लगा लिया श्याम सुंदर भाव विभोर हो गए था उनकी नैन सजल हो गए नैनों से अश्रु धारा बह ने लगी श्यामसुंदर ने प्रिया जी के नूपुरों को अपने अधरों से लगाया और उन्हें चूमा और कहने लगे कैसे सराहना करूं इन नूपुरों की परम करुणा में श्री राधा रानी अपने श्री चरणों में धारण करती हैं प्रियां के श्री चरणो मेरी जीवन धन हे केसा सौभाग्य हे इन नूपुरों का जो जिन्हें प्रिय जू श्री चरणों का सानिंध्य मिला हुआ है

🌺🌺 प्रिया जी के बिछिया और नुपर को देख कर कहने लगे प्रिया जी चाहे कोई योग हो या आयोग हो हर किसी को अपने उन्मुक्त भाव से आश्रय देती हैं राधा रानी की हाथ में अंगूठियां इस बात की साक्षी हैं की राधा रानी की कर कमलों में जिनको जो वरदान दिया है वह सदा अमोघ है और यह राधा रानी के कुंडल इस बात के साक्षी है की प्रिया जी सदा सब की सुनती हैं कोई भी सखी हो यह मंजरी हो ऐसी कोई नहीं जिसके कथन पर तो प्रिया ने ध्यान ना दिया हो पिया जू हर अपने भक्तों की बात का ध्यान देती हैं यह कुंडल इस बात के साक्षी है की प्रिया जी अपने भक्तों की बातें कितनी ध्यान से सुनती हैं

प्रिया जो की नथ इस बात की साक्षी है कि वह अपने हर भक्त की जीवन की सांसो का संचार करती है जीवन प्राण हैं अपने भक्तों पर प्रिया जी का हार इस बात का साक्षी है की प्रिया जी अपने भक्तों को अपने हृदय में स्थान देती हैं🌺🌹🌺🙏



सभी आभूषणों को श्यामसुंदर ने अपने हृदय से लगाया श्याम सुंदर के नयन सजल हो गए और उनके नैनों से अश्रुधारा बहने लगी फिर श्यामसुंदर ने एक-एक करके सारे अलंकार पहने अपनी उंगलियों में प्रिया जू की अंगूठी पहनी अपने पैरों में प्रिया जी की पायल पहनी अपने कानों में प्रिया जू का कुंडल पहना अपने गले में प्रिया जू का कंठहार पहना अपने कमर में प्रिया जू की करधनी पहनी सभी अलंकारों को एक-एक करके धारण किया और भावुक होकर इस आनंद का अनुमोदन करने लगे जो प्रिया जी अलंकारों को पहन कर आनंद पाती हैं

उसी समय प्रिया जी रति और रूप मंजिरी के साथ सृंगार कछ में आई और देखा एक श्याम सुंदर उनके के अलंकारों की अपने अंगों पर पहने हुए हैं श्यामसुंदर के इस छवि को देखकर प्रिया जी परम परमानंद पाया प्रिया जी पुलकित काय मान हो गई अपने प्रियतम का अद्भुत प्रेम अपने अलंकारों के प्रति देखकर कभी रुप मंजरी रतिमंजरी से कहने लगी कैसा अनुपम सौभाग्य है इन अलंकारों को जो आज श्यामसुंदर अपना प्रेम रस भर रहे हैं इन अलंकारों को जिससे प्रिया जी जब इन्हें धारण करें श्याम सुंदर की प्रेम से सराबोर हो जाएं ऐसे अलंकारों के सौभाग्य की जय हो जय हो ।

जय जय श्री राधे ।                         

कृपालु अमृतं


जब अनंत जीवों को वो अपना चुकें हैं फिर शंका कैसी ? फिर मेरी बात का भी तो विश्वाश करना चाहिये । सच कह रहा हूँ कि बिल्कुल तुम्हारे पास खड़े होकर मुस्कराते हुए तुम्हारे प्यार को सदा देखते हैं । बताओ वह जीव कितना बड़ा भाग्यवान है जिसको श्यामसुन्दर सदा देखें ।

#* कृपालु अमृतं | विरह रस *#
#* श्री कृपालु जी महाराज *#  
                     
 अरे! मैं तो तैयार बैठा हूँ प्रेम देने के लिए, कोई लेने वाला तो हो .......!❤❤❤❤
अनाधिकारी को भी अधिकारी मैं बना दूंगा , कोई बात तो माने मेरी......!👍👍👍👍👍
किसी को परवाह ही नहीं अपनी , तो मैं क्या कर लूँगा ?😟😟😟
क्षण क्षण अपना, साधना तथा सेवा में व्यतीत करो । आज का दिन फ़िर मिले ना मिले !! ⌚⌚⌚
दोबारा मानव देह फिर मिले ना मिले !! इस समय तो मानव देह भी मिला है और गुरु भी मिल गया है ।
फिर लापरवाही क्यों ?
इससे अच्छा अवसर फ़िर आसानी से नहीं मिलने वाला......।
बार - बार सोचो !!!
" तुम्हारा कृपालु "।

राधारानी कौन हैं ?

कृपया जरूर पढ़ें:

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा राधारानी के विषय में प्रकाश डाला जा रहा है।

राधारानी कौन हैं, थोडा समझ लीजिये। आप लोगों ने भगवान का नाम तो सुना ही होगा। राधा तत्त्व से अधिक लोग परिचित नहीं हैं। भगवान के नाम से अधिक परिचित हैं और भगवान भी बहुत प्रकार के होते हैं। एक भगवान तो श्री कृष्ण हैं, उन भगवान से एक और भगवान प्रकट होते हैं, उनको कहते हैं- प्रथम पुरुष। प्रथम पुरुष भगवान श्री कृष्ण के अंश हैं, उनको महाविष्णु भी कहते हैं। अनंत कोटि ब्रह्माण्ड के निर्माण करने में पहला काम महाविष्णु का होता है। श्री कृष्ण सृष्टि वगैरह नहीं करते। सृष्टि वगैरह बहुत नीचे वाले भगवान करते हैं। ये सृष्टि वगैरह का कार्य ब्रह्मा-विष्णु-शंकर करते हैं। श्री कृष्ण स्वयं सृष्टि नहीं करते। न करोमि स्वयं- वे स्वयं कुछ नहीं करते, वेद कहता है। तो भगवान ने अपना अंश प्रकट किया प्रथम पुरुष के रूप में। तो प्रथम पुरुष ने क्या किया, ये बलराम हैं प्रथम पुरुष। वेद कह रहा है इन्होंने (प्रथम पुरुष) संकल्प किया, सोचा, प्रकृति की ओर देखा, दो काम किया- सोचा और देखा। प्रकृति माने माया, बहिरंग माया। ये बहिरंग माया भी दो प्रकार की होती है- एक जीव माया और दूसरी गुण माया। एक माया जो आप लोगों पर हावी है और एक माया जो सृष्टि करती है, तो गुण माया जो कि सृष्टि करने वाली है, उसकी और देखा बलराम ने अर्थात् प्रथम पुरुष ने अर्थात् महाविष्णु ने। और जितने जीव थे भगवान के महोदर में लीन महाप्रलय में, उन सब जीवों को संकल्प से प्रकट किया प्रकृति में और फिर अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड का क्रमशः प्राकट्य हुआ। बस प्रथम पुरुष का काम समाप्त।
अब प्रथम पुरुष ने द्वितीय पुरुष प्रकट किया, तो प्रथम पुरुष तो कारणार्णवशायी हैं और द्वितीय पुरुष गर्भोदशायी है। इन्होंने( द्वितीय पुरुष ने) क्या किया- अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो गए- द्वितीय पुरुष, और आधे ब्रह्माण्ड को अपने संकल्प के जल से भर दिया और अपने-आप से तीसरा पुरुष प्रकट किया- ये हैं क्षीरोदशायी (विष्णु)। इन्होंने (तृतीय पुरुष ने) क्या किया- ये प्रत्येक जीव के अन्तःकरण (heart) में प्रविष्ट हो गए। और प्रत्येक जीव के अनंतानंत जन्मों के प्रत्येक क्षण (every moment) के प्रत्येक संकल्प के हिसाब को लेकर के तदनुसार जीव में जीवत्व बुद्धि में ज्ञान शक्ति, मन में चिंतन शक्ति, इन्द्रियों में तत-तत कर्म करने की शक्ति- ये सब तृतीय पुरुष (क्षीरोदशायी) ने प्रदान किया। तो ब्रह्मा- विष्णु- शंकर के जनक गर्भोदशायी, और इनके जनक कारणार्णवशायी ( महाविष्णु) - इतने भगवान तो ऐसे हैं जो work करते हैं और श्री कृष्ण कुछ नहीं करते। कोई work नही है श्री कृष्ण का। इनका काम तो केवल एक है, क्या? जीवों का उद्धार और प्रेमदान करना। ये दो काम- माया की निवृति कराना और प्रेमदान करना। तो माया की निवृति और प्रेमदान, ये सारे भगवान करते हैं- क्योंकि उपरोक्त सारे भगवान श्री कृष्ण के ही स्वरूप् हैं, इनके स्वांश हैं, और विभिन्नांश हम लोग हैं। स्वांश में उनके परिकर भी हैं- ललिता-विशाखा आदि, ये भी स्वांश हैं। ये सब भगवद् स्वरूप् हैं। और कुछ नित्य सिद्ध महापुरुष होते हैं- वो भी भगवान के परिकर हैं, लेकिन वो जीव हैं, स्वांश नहीं। जीव् यानी हम लोग तटस्था शक्ति के अंश हैं और स्वांश भगवान के डायरेक्ट अंश हैं- उनके अभिन्न स्वरूप् हैं, इतना बड़ा अंतर है। सदा से जो माया से मुक्त थे, ऐसे अनादि सिद्ध महापुरुष भगवान की सेवा करते हैं, लेकिन वो जीव हैं, उनको नित्य- सिद्ध महापुरुष कहते हैं। और शेष मायाबद्ध जीव हम लोग हैं ही। तो अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक महाविष्णु ये प्रथम पुरुष हैं- इनको बलराम कहते हैं। द्वितीय पुरुष गर्भोदशायी- इनको प्रद्युम्न कहते हैं तथा तृतीय पुरुष क्षीरोदशायी- इनको अनिरुद्ध कहते हैं। लेकिन ये सब भगवान ही हैं। मैने बताया था न राम नवमी को- अपने ही स्वरूप् को अंश रूप में प्रकट कर दिया। ये सब जितने भी भगवान हैं ये सब स्वरूप शक्ति को गवर्न (govern) करते हैं। भगवान् की एक पर्सनल पावर (personal power) है, उसका नाम है- स्वरूप शक्ति। उस स्वरूप शक्ति को गवर्न (govern) करते हैं ये सब के सब- ब्रह्मा- विष्णु- शंकर, और गर्भोदशायी, क्षीरोदशायी, महाविष्णु ये सब भगवान हैं। अर्थात् इन सबमें परिपूर्ण शक्तियाँ हैं छोटा-बड़ा नहीं कहना। काम अलग-अलग हैं। तो इन सब भगवानो का कार्य है- सृष्टि संबंधी, और श्री कृष्ण ने केवल संकल्प करके प्रथम पुरुष (महाविष्णु) को प्रकट कर दिया और उनकी छुट्टी (उनका काम खत्म)। अब उनके अंश सब काम कर रहे हैं।
तो श्री कृष्ण क्या करते हैं? श्री कृष्ण अपने भक्तों के साथ नित्य-नवायमान लीलाएँ करते हैं गोलोक में। उनका एक ही वर्क (work) है- आनंद देना और आनंद लेना। भक्तों को आनंद देना और भक्तों से आनंद लेना, और इन दोनों में भी भक्तों से आनंद लेना बहुत उच्च-कोटि (high level) का है, और भगवान का जो अपना आनंद है, वह इसके आगे निम्न कोटि का है, उसे स्वरूपानंद कहते हैं। अपना आनंद भगवान को जो मिलता है, वो छोटा है। छोटा का मतलब लिमिटेड (limited) नहीं, वो रस- वैलक्षण्य की दृष्टि से हम कह रहे हैं उसे छोटा। और जो भक्तों से आनंद मिलता है वह मानसानंद कहलाता है, उसमे विशेष मधुरता हो जाती है। इतनी मधुरता हो जाती है कि जब अपना आनंद भगवान लेते हैं, तो समस्त शक्तियाँ उनके पास रहती हैं- ऐश्वर्य शक्ति भी, माधुर्य शक्ति भी। और जब भक्तों के सामने भगवान जाते हैं, तो ऐश्वर्य शक्ति समाप्त हो जाती है। केवल माधुर्य- माधुर्य रह जाता है। यानी भगवान क्रीत दास बन जाते हैं। ये तो भक्त और भगवान की बात मैंने बताई। ये जो भगवान आनंद देते हैं और लेते हैं, इस प्रेमानंद का जो खजांची है जिसके पास ये पूरा माल-टाल है, चाभी है तिजोरी की, वो है- °राधा- तत्त्व°। यानी किशोरी जी से लिया और भक्तों को दिया। - - - ह्लादिनी शक्तेरो परम सार तार प्रेम नाम- - - और प्रेमेरो परम सार महाभाव जानी सेइ महाभाव रूपी राधा ठकुरानी। आनंद में भी मधुरता की- मधुरता की- मधुरता की जो चरम सीमा है- वह राधा है। आनंद तो बहुत छोटी-सी चीज़ है। आनंद अभी मिला नहीं आप लोगोँ को, जब मिलेगा तब समझियेगा आनंद क्या होता है!
आनंद सबसे नीचे क्लास का होता है परमहंसो का, ब्रह्मानंद कहते हैं उसको, अनन्त आनंद होता है वह। उससे ऊँचा आनंद होता है योगियों का, वो परमात्मानंद कहलाता है। उससे ऊँचा आनंद होता है शांत भाव के उपासक भक्तों का(वैकुण्ठ का)। और उससे भी ऊँचा दास्य भाव का, उससे भी ऊँचा सख्य भाव का, उससे भी ऊँचा वात्सल्य भाव का, उससे भी ऊँचा माधुर्य भाव का रस होता है। और माधुर्य भाव में भी तीन क्लास होते हैं- (1)सकाम (2) सकाम- निष्काम मिक्चर और (3) केवल निष्काम।
सकाम प्रेम कुब्जा आदि का, सकाम- निष्काम मिक्चर रुक्मणी आदि का और निष्काम ब्रज गोपियों का प्रेम है। निष्काम प्रेम माने जिसमे कोई कामना ना हो। देखो ब्रह्मानंदि को तो मोक्ष की कामना है। कोई कहता है, हे श्री कृष्ण दर्शन दो, ये भी कामना है। क्यों दर्शन दो, ऐसा क्यों कहते है तुम्हारे सर्वेण्ट (servent) हैं।
उनकी जब इच्छा हो, तब दर्शन दें, हम आज्ञा देने वाले कौन होते हैं। हमारी केवल एक ही मंशा होनी चाहिए- श्री कृष्ण की सेवा करना, यही हमारा लक्ष्य है और उस सेवा से हमको आनंद मिले, ना-ना ये मत मानना। अगर आनंद का उपभोग करने लगे आप, तो फिर सेवा नहीं कर सकते आप।
एक भक्त श्री कृष्ण को पंखा कर रहा था और पंखा करते-करते आनंद के आँसू आ गए, हाथ रुक गया, होश आया- अरे! ये मैं आनंद लेने लगा, ऐसा गधा हूँ मैं कि अपने प्राण-वल्लभ की सेवा छोड़ आनंद लेने लगा, स्वार्थी हूँ मैं तो।
बस! सुन लीजिये, अभी वहाँ की कल्पना भी नहीं कर सकते आप। तो ऐसा प्रेम है गोपियों का जो समर्था रति का प्रेम होता है, लेकिन वो गोपियाँ भी महाभाव तक जाती हैं बस! ये अंतिम स्थिति है। इसके आगे एक और क्लास है- जहाँ श्री कृष्ण भी नहीं जा सकते। - मादनाख्य-महाभाव- वहाँ केवल किशोरी जी की सीट है, राधा तत्त्व है। वहीं से सप्लाई होता है वो, ठाकुर जी के पास आता है, भिखारी बनकर इसीलिए ठाकुर जी किशोरी जी की उपासना करते हैं। इसीलिए सबसे पहले राधा शब्द बोला जाता हैं, नंबर दो पर है श्री कृष्ण। ब्रह्मवैवर्त पुराण कहता है- पहले राधा का उच्चारण करना जीवों, उसके बाद श्री कृष्ण का। श्री कृष्ण राधा तत्व के अंडर में हैं और श्री कृष्ण के अंडर में महाविष्णु, और गर्भोदशायी और क्षीरोदशायी, सब उनके अंडर में है। लेकिन हैं सब ये स्वरूप शक्ति के मालिक।
तो राधा तत्त्व वो है जिसकी उपासना स्वयं श्री कृष्ण करते हैं, जिन श्री कृष्ण की उपासना महाविष्णु आदि करते हैं, जिनके अंडर में अनंत कोटि ब्रह्माण्ड हैं। तो उस राधा तत्त्व के विषय में कोई शब्दों की गति नहीं, जिसके बारे में वेद (राधोपनिषद ने कहा) भी ठीक से नहीं जानते, वहाँ है वह राधा तत्त्व।

--- बोलिये लाड़ली लाल की जय।