जो ज्ञान अनंत जन्मो मे शास्त्रों वेदों को पढ़ कर भी तुम्हें न मिलता वो हमने तुम्हें करा दिया है।



जो ज्ञान अनंत जन्मो मे शास्त्रों वेदों को पढ़ कर भी तुम्हें न मिलता वो हमने तुम्हें करा दिया है। और ऐसा नही की रट्टू विद्या ,हमारी बुद्धि ने माना की हां बात तो ठीक कह रहे हैं महाराज जी। फिर अब practical साधना करो न ।जी महाराज जी जरा ये हो जाए जरा लड़का धंधा सम्भाल ले फिर यही करेंगे।अभी जरा ये नासमझ है । तुम्हारा लड़का तुम्हारे लिए तो हमेशा ही बच्चा ही रहेगा । ये जो उधार करने की बिमारी ने तुम्हारे अनंत जन्म बिगाडे और फिर उधार कर रहे हो ? उधार छोड़कर तुरंत साधना मे लग जाओ ।

जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज

भक्ति का एक बीज अपने मन में लगा लेने की ज़रूरत है।



 🔹गुरू एक तेज हे जिनके आते ही
     सारे सन्शय के अंधकार खतम हो
     जाते हे।
🔹गुरू वो मृदंग हे जिसके बजते ही
     अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते
     हे l
🔹गुरू वो ज्ञान हे जिसके मिलते ही
     पांचो शरीर एक हो जाते हे।
🔹गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे
     मिलती हे तो पार हो जाते हे।
🔹गुरू वो नदी हे जो निरंतर हमारे
     प्राण से बहती हे।
🔹गुरू वो सत चित आनंद हे जो हमे
     हमारी पहचान देता हे।
🔹गुरू वो बासुरी हे जिसके बजते ही
     अंग अंग थीरक ने लगता हे।
🔹गुरू वो अमृत हे जिसे पीके कोई
     कभी प्यासा नही।
🔹गुरू वो मृदन्ग हे जिसे बजाते ही
     सोहम नाद की झलक मिलती हे।
🔹गुरू वो कृपा हि हे जो सिर्फ कुछ
     सद शिष्यो को विशेष रूप मे
     मिलती हे l

🔹गुरू वो खजाना हे जो अनमोल हे।
🔹गुरू वो समाधि हे जो चिरकाल
     तक रहती हे।
🔹गुरू वो प्रसाद हे जिसके भाग्य में
  हो उसे कभी कुछ मांगने की
     ज़रूरत नहीं l

हरिगुरु प्रेम


जो व्यक्ति हरिगुरु प्रेम से वास्तविक रुप से भरता जाता है वह संसार मे भी व्यवहारिक होता जाता है शालिनता आती जाती है उसका व्यवहार निश्चल , निश्कपट होता जाता है , आन्तरिक  परिवर्तन , शुध्दता उसके व्यवहार के आईने मे साफ गोचर होता है , वह हर किसी को एक ही भाव से देखता है कि उसमे हमारे प्रेमास्पद बैठे हैं, हमारा व्यवहार ही हमारे सोच और प्रगति का आइना होता हैं , छल , कपट मलिनता दुर होती जाती है , जैसे जैसे अंत:करण शुध्द होता जाता है  अहंकार , क्रोध, राग, द्वेश , ईर्श्या घृणा आदी समाप्त होती जाती है, अगर यह नही हो रहा है तो समझो की हम अभी कक्षा एक का भी विध्यार्थी नही है , चाहे हम गुरु के कितने पास ही क्युँ न हो शरीर से  , हम पास होकर भी प्यासे है खाली हैं , चिराग तले अँधेरे की तरह , हरिगुरु से प्रेम का नाटक मात्र किय जा रहे हैं पर उनके सिध्दातं और उनके प्रेम से कोसो दुर हैं  और कोई बहुत दुर है पर उसका कल्याण हो रहा है क्युकि वो वास्तविक रुप से हरिगुरु का परमचरणानुरागी है |

सारा काम चिंतन का है


सारा काम चिंतन का है और कुछ है ही नहीं विश्व में। अधिक चिंतन जिस चीज का करोगे वैसे ही बन जाओगे। अच्छाई का चिंतन करो अच्छे बन जाओगे, बुराई का चिंतन कुछ दिन करो, कितने भी अच्छे हो,जरूर बुरे बन जाओगे। चिंतन की लिंक के अनुसार उत्थान पतन दोनों संभव है। इसलिए मन को खाली मत रखो, गलत सँग में मत डालो। गलत व्यक्तियों से न बात करो, न उनकी सुनो, और कहीं कान में पड़ जाये तो उसको ऐसे फेंक दो जैसे कंकड़ को खाना खाते समय फेंक देते हैं। चिंतन में अनंत शक्ति है, राक्षस बना दे, महापुरुष बना दे।

    जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज